प्लास्टिक के थैले पॉलिमर्स के तीन प्रकारों में से एक द्वारा बनती हैं - पॉलिथिलीन- हाई डेंसिटी पॉलिथिलीन (एचडीपीई), लो डेंसिटी पॉलिथिलीन (एलडीपीई), या लीनियर लो-डेंसिटी पॉलिथिलीन (एलएलडीपीई)। किराने की थैलियां अधिकतर एचडीपीई द्वारा बनाई जाती हैं और थैले ड्राई क्लीनर एलडीपीई से। इन दोनों में सबसे बड़ा अंतर पॉलिमर श्रृंखला की ब्रांचिंग की डिग्री का है। एचडीपीई और एलएलडीपीई में रैखिक अशाखित श्रृंखला होती हैं वहीं एलडीपीई शाखित होती हैं।
क्या प्लास्टिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है?
प्लास्टिक आंतरिक रूप से विषाक्त या हानिकारक नहीं है लेकिन प्लास्टिक की थैलों को कार्बनिक और अकार्बनिक योज्यों, जैसे कलरेंट्स और पिगमेंट्स, प्लास्टिसाइजर्स, एंटीऑक्सीडेंट्स, स्टैबलाइजर्स और धातुओं से बनते हैं।कलरेंट्स और पिगमेंट्स औद्योगिक एजोडाइज है जिन्हें प्लास्टिक के थैलों को चमकीला रंगने के लिए प्रयोग किया जाता है। इनमें से कुछ कैंसर उत्पन्न करने वाले कारक होते हैं और यदि इनमें खाद्य पदार्थों को रखा जाए तो ये खाद्य पदार्थों को दूषित कर देते हैं। पिगमेंट्स में मौजूद भारी धातु, जैसे कैडमियम भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होते हैं।
प्लास्टिसाइजर्स, लो वॉलेटाइल प्रकृति के आर्गेनिक एस्टर्स हैं। ये भी खाने के सामान को खराब कर सकते हैं। प्लास्टिसाइजर्स भी कैंसर उत्पन्न करने वाले होते हैं।
एंटीऑक्सीडेंट्स और स्टैबलाइजर्स अकार्बनिक और कार्बनिक रसायन होते हैं जो विनिर्माण की प्रक्रिया में तापीय विघटन से बचाव करता है।
कैडमियम और लेड जैसे टॉक्सिक धातुओं को जब प्लास्टिक के थैले बनाते समय प्रयोग किया जाता है तो वे भी उन थैलियों में रखे खाने वाली चीजों को खराब करता है। यदि कैडमियम का सेवन कम मात्रा में नियमित रूप से किया जाए तो उससे उल्टी होने या दिल के बड़े होने की समस्या हो सकती है। लेड से दिमाग के ऊतकों को क्षति पहुंचती है।
प्लास्टिक के थैलों से होने वाली समस्याएं
पतली प्लास्टिक की थैलियों की कीमत कम होती है और उनका पृथक्करण काफी मुश्किल होता है। यदि प्लास्टिक के थैलों की मोटाई अधिक रखी जाए तो वे महंगी होंगी और उनका प्रयोग भी अधिक समय तक किया जा सकेगा। कचरा प्रबंधन और निपटान प्रणाली में प्लास्टिक मैनुफ्रैक्चरर एसोसिएशन और कचरा उठाने वालों को भी शामिल किया जा सकता है।
प्लास्टिक की थैलियों, पानी की बोतलों, प्लास्टिक के पाउचों से पैदा होने वाले कचरे का प्रबंधन काफी समय से ठोस कचरा प्रबंधन नगरपालिका के लिए चुनौती बना हुआ है। कई पहाड़ी राज्यों (जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, पश्चिम बंगाल) में पर्यटन क्षेत्रों में प्लास्टिक की थैलियों और पानी की बोतलों के प्रयोग पर रोक लगाई गई है। हिमाचल प्रदेश में राज्य सरकार ने मंत्रिमंडल के निर्णय द्वारा एचपी नॉन-बायोडिग्रेडेबल गार्बेज (कंट्रोल) कानून, 1995 के अंतर्गत 15.08.2009 से राज्य भर में प्लास्टिक के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है।
केंद्रीय सरकार ने भी देश भर में प्लास्टिक से पर्यावरण को हो रहे नुकसान को रोकने के लिए एक समिति और टास्क फोर्स बनाई, जिसने अध्ययन किया और सिफारशें तैयार कीं।
पर्यावरण और वन मंत्रालय ने रिसाइकल्ड प्लास्टिक्स मैनुफैक्चर और यूसेज रूल्स 1999 को जारी किया और 2003 में इसे पर्यावरण (संरक्षण) कानून, 1986 के अंतर्गत उसे संशोधित किया गया। इसके अंतर्गत प्लास्टिक की थैलियां और कंटेनर्स का प्रबंधन करने की योजना बनाई गई। द ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (बीआईएस) ने बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक्स के दस मानक तय किए हैं।
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