- अयन' का अर्थ होता है चलना।
- पूरे वर्ष में सूर्य गतिमान रहता है, सूर्य की अवस्था से ही ॠतुओं का निर्धारण होता है।
- हिन्दू धर्म में अयन 'समय प्रणाली' है जिससे ॠतुओं का ज्ञान होता है।
- क्रांति वृत के प्रथम अंश का विभाजन उत्तर और दक्षिण गोल के मध्यवर्ती धुर्वों के द्वारा माना गया है। यह विभाजन "उत्तरायन" और "दक्षिणायन" कहलाता है।
- एक वर्ष दो अयन के बराबर होता है और एक अयन देवता का एक दिन होता है. 360 अयन देवता का एक वर्ष बन जाता है।
- सूर्य की स्थिति के अनुसार वर्ष के आधे भाग को अयन कहते हैं। अयन दो होते हैं-
- उत्तरायन - सूर्य के उत्तर दिशा में अयन अर्थात गमन को उत्तरायन कहा जाता है।
- दक्षिणायन - सूर्य के दक्षिण दिशा में अयन अर्थात गमन को दक्षिणायन कहा जाता है।
- उत्तरायण शब्द 'उत्तर' एवं 'अयन' इन दो शब्दों से बना है।
- 'अयन' का अर्थ होता है चलना।
- सूर्य के उत्तर दिशा में अयन अर्थात गमन को उत्तरायन कहा जाता है।
- आधे वर्ष तक सूर्य, आकाश के उत्तर गोलार्ध में रहता है।
- उत्तरायन के छह महीनों में सूर्य मकर से मिथुन तक भ्रमण करते हैं।
- उत्तरायन काल को प्राचीन ऋषि मुनियों ने पराविद्याओं, जप, तप, सिद्धि प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण माना है।
- मकर संक्राति उत्तरायन काल का प्रारंभ दिन है इसलिए इस दिन किया गया दान, पुण्य, अक्षय फलदायी होता है।
- सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश के कारण इसे मकर संक्रांति कहते हैं।
- इसे सौम्य आयन भी कहते हैं। जब सूर्य मकर राशि में अर्थात 21-22 दिसम्बर से लेकर मिथुन के सूर्य तक रहता है।
- छ: मास का समय उत्तरायण कहलाता है।
- भारतीय मास के अनुसार यह माघ मास से आषाढ़ मास तक माना जाता है।
- उत्तरायण को देवताओं का दिन माना जाता है।
- इस समय में सूर्य देवताओं का अधिपति होता है।
- शिशिर , वसन्त और ग्रीष्म ऋतु उत्तरायण सूर्य का संगठन करती है।
- इस अयन में नूतन गृह प्रवेश, दीक्षा ग्रहण, देवता -बाग़ -कुआँ- बाबडी- तालाब आदि की प्रतिष्ठा, विवाह, चूडाकर्म और यज्ञोंपवीत आदि संस्कार करना अच्छा माना जाता है।
- दक्षिणायण में सूर्य कर्क से धनु राशि में भ्रमण करते हैं।
- दक्षिणायण देवताओं की रात्रि माना जाता है।
- दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्रि माना जाता है।
- जब सूर्य कर्क राशि अर्थात 21-22 जून से ले कर छ: माह तक अर्थात धनु राशि तक रहता है , तब तक दक्षिणायन कहलाता है। इसे 'याम्य अयन' भी कहते है
- दक्षिणायन में वर्षा , शरद और हेमंत आदि ऋतु होती है।
- इस काल में सूर्य पितरों का अधिपति माना जाता है।
- इस काल में षोड़श कर्म और अन्य मांगलिक कर्मों के आतिरिक्त अन्य कर्म ही मान्य है।
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