क्या आप जानते है की ब्रम्हांड ऑक्सीजन विहीन है और किसी भी चीज के जलने के लिए ऑक्सीजन सबसे जरुरी होता है. फिर भला ऑक्सीजन विहित ब्रम्हांड में भी सूरज में बरसों से आग कैसे धधक रही है.
दरअसल, किसी भी चीज के जलने की लिए सारी प्रक्रिया किसी एक इधन (तेल, कोयला, लकड़ी,) तथा ऑक्सीजन के बिच ही होती है.
लेकिन सूरज में आग का धधकना इन प्रक्रियाओ से बिलकुल भिन्न होता है.
वास्तव में सूरज में आग का धधकना एक नाभिक्रिय प्रक्रिया है, जिसमे हाइड्रोजन के जरिये हीलियम का निर्माण होता है.
सूर्य के भीतरी भाग में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व होता है. हाइड्रोजन, जो एक विशिष्ट नाभिकीय संलयन के द्वारा जुड़ - जुड़कर जब हीलियम में परिवर्तित होने लगती है तो इतनी ज्यादा उर्जा पैदा होती है की आसपास का तापमान १० लाख डिर्गी संटिग्रेड तक पहुच जाता है.
उर्जा तथा ऊष्मा धीरे- धीरे भीतरी भाग से सूरज की उपरी सतह तक आ जाती है, जहा का करीब ५००० डिग्री सेल्सियस तापमान इतनी तेज चमक पैदा करता है की सूरज हमें जलता हुआ सा प्रतीत होता है. और सूरज की यही चमक पृथ्वी तक दिन की रोशनी के रूप में पहुचती है.
अब सवाल यह है की यही नाभिकीय प्रक्रिया सूर्य के भीतर शुरू हुए हजारो वर्ष हो चुके है पर फिर भी सूरज श्रुखलाबध्द तरीके से आज तक लगातार क्यों जल रहा है?
इसका कारण है इसी नाभिक्रिय प्रक्रिया से जनित भारी उर्जा तथा ऊष्मा, भारी उर्जा तथा अत्यधिक ऊष्मा के कारण सूर्य की आतंरिक हाइड्रोजन के न्यूक्लियस लगातार कम्पित होते रहते है औरइस दौरान वे एक दुसरे से टकराते और जुड़ते रहते है.
इस संलयन में हीलियम का निर्माण होता जाता है. जिससे बहुत बड़ी मात्रा में उर्जा उत्पन्न होती जाती है और यही प्रक्रिया निर्बाध रूप से चलती रहती है.
यही है बगैर ऑक्सीजन के सूर्य के लगातार धधकते रहने का राज.
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